PARMATMA
मैं न ज्योति हूँ न मैं प्रकाश हूँ क्योकि मैं पदार्थ नहीं हूँ. मैं शरीर और बुद्धि भी नहीं हूँ. मैं पूर्ण विशुद्ध ज्ञान हूँ. मैं सर्वत्र हूँ. सभी जड़ चेतन में मैं अंश रूप में व्याप्त हूँ. मैं न जन्म लेता हूँ न मरता हूँ, मैं सदा शाश्वत हूँ. मेरी उपस्थिति से प्रकृति भूतों की रचना करती है.मैं परम स्थिति हूँ और उपलब्धि का विषय हूँ. मैं जब प्रगट होता हूँ प्रकृति और पुरुष का नाश कर देता हूँ.
Saturday 21 October 2017
Wednesday 18 October 2017
🌺🌺🌺🌺हिंदू कौन?🌺🌺🌺
हिंदू सिंधु शब्द से बना है. यह शब्द उनके लियें प्रयुक्त किया जाता था जो सिंधु नदी के आसपास व पूर्व में रहते थे. आज हिंदू यद्यपि पूरे विश्व में फ़ेले हैं पर यह भारतीय प्रायद्वीप में सघन रूप से बसे हैं.
१. सभी हिंदू सनातन धर्म को मानते हैं.
सनातन का अर्थ है जिसका न आदि है न अंत. धर्म का अर्थ है ईश्वर. धारयेत इति धर्म. जिसने धारण किया है. जो प्रकृति को और सृष्टि को धारण करने वाला है वह ईश्वर है.
धर्म का दूसरा अर्थ है जिसे धारण किया है. जिसे धारण किया है वह प्रकृति है.
इसलिए सनातन धर्म को मानने वाले सनातनी, परमात्मा और प्रकृति दोनों को मानते हैं. कुछ परमात्मा को, कुछ प्रकृति और परमात्मा को और कुछ प्रकृति को मानने वाले हैं. इसी कारण सनातनियों में भिन्न भिन्न पूजा पद्धित प्रचलित हैं. यहाँ तक कि वह व्यक्ति जो ईश्वर को नहीं मानता वह भी हिंदू सनातनी है क्योंकि वह अपने को अथवा प्रकृति को मानता है.
२. हिंदू दर्शन की प्रमुख बातें.
परमात्मा अव्यक्त है उसे बताया नहीं जा सकता.
उसे ब्रह्म कहा गया है.
ब्रह्म विस्तार को प्राप्त होता रहता है. वह अद्वितीय और असीम है. वह निराकार है पर वह साकार भी हो जाता है. यह जगत भी उसका ही एक रूप है.
३ जब वह ब्रह्म माया को स्वीकार कर उसमें अपनी दिव्यता के साथ चमकता है तो ईश्वर कहलाता है.
४. दिव्यता के आधार पर देवी,देवता, सिद्ध आदि होते हैं.
५. जो मनुष्य ईश्वरीय दिव्यताओं से युक्त हो जाता है वह अवतार कहलाता है.
६. ईश्वर की मूर्ति पूजन मूर्ति पूजकों के प्रेम का प्रतीक है. मूर्ति पूजन उसी प्रकार है जैसे बेटा अपने माँ बाप की फ़ोटो के प्रति आदर व प्रेम का भाव रखता है. संसार के प्रत्येक लोक किसी न किसी रूप में प्रतीक को मानते हैं. सनातनियों की प्रतीक पूजा ईश्वर के प्रति उसकी भक्ति है उसका प्रेम है.
७. अवतार की अवधारणा विकास वादी सिद्धांत है. पत्थर से मिट्टी- वनस्पति - कीट -पशु - मनुष्य - अधि मानव- महामानव - देवता- ईश्वर.
८. हिंदुओं के देवी, देवता, ईश्वर वह हैं जिन्होंने अपने तप बल से दिव्यता प्राप्त की और देवता और ईश्वर हो गये. बहु देवी देवता होने का यही एक मात्रा कारण है.
९. हिंदू सृष्टि के प्रत्येक कण में परमात्मा का वास देखता है. यहाँ यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक कण ईश्वर नहीं हैं.
१०. वह ॐ को ही ईश्वर मानता है इसलिये किसीभी देवी देवता के के पहले वह सदा ओम् कहता है.
११ उसकी आध्यात्मिक यात्रा संसार से शुरू होकर ईश्वर तक पहुँचती है. वह ईशत्व की खोज करता है.
१२. सब जीवों का, संसार का कल्याण सनातन लक्ष है, उसका स्वभाव है.
Sunday 1 October 2017
Sunday 2 July 2017
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